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रावण के 3 जन्मों की रहस्यमय कथा कहानी

रावण के 3 जन्मों की रहस्यमय कथा कहानी


लोग लंकापति रावण को अनीति अनाचार काम क्रोध अधर्म और बुराई का प्रतीक मानते आए हैं | इस कारण से वह उससे घृणा करते रहे हैं | लेकिन यहां एक ध्यान देने योग्य बात है दशानन रावण में कितने ही राक्षसी तत्व क्यों ना हो, उनके गुणों की अनदेखी नहीं की जा सकती है | तो इतने गुणवान राक्षस के पीछे भी जरूर कोई दैवीय शक्ति ही कार्य कर रही होगी जिसके कारण ऐसे राक्षस का जन्म हुआ |
आज जानते हैं रावण के जन्म का रहस्य जो बहुत कम लोगों को ज्ञात है|

रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे| वह एक प्रकांड विद्वान था जिसके कारण उसकी शास्त्रों पर अच्छी पकड़ थी | तंत्र-मंत्र गूढ़ विद्याओं और सिद्धियों का ज्ञानवान रावण भगवान भोलेनाथ का अनन्य भक्त था|

रावण के जन्म के विषय में अलग-अलग लेख मिलते हैं | वाल्मीकि रामायण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप नामक राक्षस दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए | कुछ ऐसा ही उल्लेख पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में भी मिलता है |

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण, विश्वश्रवा का पुत्र और पुलस्त्य मुनि का पोता था | विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी| वरवर्णिनी नें कुबेर को जन्म दिया, लेकिन कैकसी ने अशुभ समय में गर्भ धारण किया जिसके कारण उसके गर्भ से रावण और कुंभकरण जैसे क्रूर राक्षस पैदा हुए|

तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म एक शाप के कारण हुआ बताया जाता है |एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के दर्शन के लिए सनक सनंदन आदि ऋषि बैकुंठ पधारे किंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें अंदर प्रवेश करने देने से मना कर दिया | समस्त ऋषि इस बात से अप्रसन्न हो गए और उन्होंने क्रोध में आकर जय और विजय को श्राप दे दिया कि तुम राक्षस बन जाओ | तब जय और विजय ने ऋषियों से प्रार्थना की और क्षमा मांगी | भगवान विष्णु ने भी ऋषियों से जय और विजय को शमा करने के लिए कहा | फलस्वरूप ऋषियों ने अपने दीए श्राप की तीव्रता थोड़ी कम की और कहा कि कम-से-कम 3 जन्मो तक तुम राक्षस योनि में ही जन्म लोगे, उसके बाद ही तुम अपने पद पर वापिस आ सकोगे | अब क्योंकि यह घटना भगवान विष्णु के वैकुंठ में हुई थी, तो उन्होंने इसमें एक बात और जोड़ दी कि भगवान विष्णु या उनके किसी अवतार के हाथों ही तुम्हें मरना होगा |

was ravan incarnation
भगवान विष्णु के यह द्वारपाल पहले जन्म में हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप राक्षसों के रूप में जन्मे| हिरण्याक्ष राक्षस बहुत शक्तिशाली था और उसने पृथ्वी को उठाकर पाताल लोक में पहुंचा दिया | पृथ्वी को वापस पाताल लोक से निकालने के लिए भगवान विष्णु को वराह अवतार धारण करना पड़ा | फिर विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को मुक्त कराया |

वहीं दूसरी ओर हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी तो सबको पता है कि किस तरह उसने अपने ही पुत्र को जो कि एक विष्णु भक्त था मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी| तब हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने ही नरसिंह अवतार रूप धारण किया था | त्रेता युग में यह दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए,जिनका वध विष्णु के अवतार श्री राम ने किया|

तीसरे और अंतिम जन्म में जब विष्णु, श्री कृष्ण जी के रूप में अवतरित हुए थे, तब यह दोनों शिशुपाल वह दंतवक्र नाम के अनाचारी रूप में पैदा हुए थे | तब इन का वध श्रीकृष्ण के हाथों हुआ और जय – विजय उस श्राप से मुक्त हुए जो ऋषियो द्वारा इन्हें दिया गया था | तो आज आपने इस कथा में जाना कि किस तरह एक श्राप के कारण रावण और कुंभकरण जैसे राक्षसों का जन्म हुआ जिसकी नियति पहले ही तय कर दी गई थी | तो जब भी किसी राक्षस का अवतरण होता है उसका वध करने के लिए भगवान का कोई रूप भी साथ जन्म लेता है |
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