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महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – कर्ण और अर्जुन भाग 2

महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – कर्ण और अर्जुन भाग 2

कर्ण और अर्जुन के महायुद्ध का यह दूसरा भाग है | कर्ण और अर्जुन के बीच महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – भाग 1 का लिंक |

कर्ण ने वहां उपस्थित मुख्य मुख्य पांचाल योद्धाओं को घायल कर दिया | ऐसा होता देख पंचाल और सोमक योद्धा एकत्रित होकर कर्ण पर प्रहार करने लगे | कित्नु कर्ण ने पूर्ण उत्साह के साथ इन सबका जवाब एक साथ दिया और वे सब पल भर में मृत्यु को प्राप्त हो गए | कुशल पांडव योद्धाओं को एक साथ मरता देख कौरव सेना कर्ण की जयजयकार करने लगी | ऐसा लगा मानो कर्ण अचानक प्रचंड किरणों वाले सूर्य के सामान उदित हुए हो |

जयजयकार करते कौरव योद्धाओं को लगा कर्ण ने अर्जुन और श्री कृष्ण को अत्यंत घायल कर दिया हो | अर्जुन के इंद्रास्त्र को इस प्रकार व्यर्थ हुआ देख भीमसेन अर्जुन के पास गए और हाथ मलते हुए बोले | हे अर्जुन, तुम्हें तो पूर्वकाल में देवता भी नहीं जीत सके थे | तुम साक्षात् भगवान शंकर की भुजाओं से भी टक्कर ले चुके हो, तो इस सूत पुत्र कर्ण ने तुम्हें कैसे बींध डाला ? तुम्हारे विशाल बाण समूहों को इस प्रकार नष्ट होता देख मुझे घोर आश्चर्य हुआ | 

हे अर्जुन, कौरव सभा में हुए द्रौपदी के अपमान को तो याद करो | इस सूतपुत्र कर्ण नें ही हमें नपुंसक बताया था और हमारा घोर अपमान किया था |

तभी वासुदेव कृष्ण भी बोल उठे | किरीटधारी अर्जुन, यह क्या बात हुई ? तुमनें अब तक जितने भी प्रहार किए, उन सबको कर्ण ने अपने अस्त्रों द्वारा नष्ट कर दिया | तुम पर कुछ अलग प्रकार का सा मोह छाया हुआ है | देखो शत्रु किस प्रकार कर्ण की जयजयकार कर रहे हैं | तुम्हारे अस्त्रों को इस प्रकार नष्ट हुआ देख कौरव योद्धा कर्ण को ही विजयी समझ रहे हैं | तुमने पूर्वकाल में न जाने कितने घोर राक्षसों का वध किया है, उनके मायावी अस्त्रों का विनाश किया है | सावधान होकर अपने धैर्य को एकत्रित करो और आज बलपूर्वक शत्रु का मस्तक काट डालो |

भीमसेन और श्री कृष्ण के ऐसे प्रेरणा देने वाले बोल सुन अर्जुन का मन संगठित होने लगा | अब अर्जुन ने ब्रह्मा जी को नमस्कार कर, मन द्वारा संचालित ब्रह्मास्त्र के सूक्ष्म रूप को प्रकट किया | कर्ण पूर्णतया सावधान खड़ा था और उसनें प्रकट होते ही उसे पहचान लिया और अपने अनेक बाण समूहों का एक साथ संचालित कर कर्ण नें उस शुक्ष्म ब्रह्मास्त्र को आकाश में ही नष्ट कर दिया |

इसे देख भीमसेन पुन: क्रोध से भर गए और अर्जुन से क्रोध में बोले | तुम सबसे उत्तम एवं मन द्वारा संचालित होने वाले ब्रह्मास्त्र के ज्ञाता हो, किन्तु उसका ये परिणाम देख मैं विचलित हो गया हूँ | तुम किसी दूसरे दिव्यास्त्र का प्रयोग करो |

अर्जुन ने भार्गवास्त्र के ही एक अन्य रूप को प्रकट किया | उस से हज़ारों की संख्या में शूल, फरसे, चक्र, नाराच आदि अस्त्र अस्त्र प्रकट होकर शत्रु सेना पर प्रहार करने लगे | वे सब इतने भयंकर रूप में बरस रहे थे की शत्रु सेना के मुख्य मुख्य योद्धाओं का संहार हो गया | किसी का सर कटा तो किसी के अंग भंग हो गए | दुर्योधन की अधिकतर सेना का इस अस्त्र नें विनाश कर दिया |

ये देख कर्ण ने भी सहस्त्रों बाण समूहों से अर्जुन के अस्त्र पर प्रहार किया जो भाग्रावास्त्र जैसा ही अस्त्र था | कर्ण के अस्त्र अर्जुन के अस्त्रों को काटते हुए आगे बढ़े और अर्जुन को भी जा लगे | मौका मिलते ही इस भयंकर बलशाली कर्ण नें तीन तीन बाणों से अर्जुन, श्री कृष्ण और भीम को घायल कर दिया |

अर्जुन, श्री कृष्ण और भीम को इस प्रकार क्षत-विक्षत देख सहें नहीं कर पाए और उन्होनें आवेश में 18 बाण निकाले | एक बाण से कर्ण की ध्वजा की बींधा, चार बाणों से शल्य को और तीन बाणों से कर्ण को घायल कर दिया | बाकी 10 बाण, कर्ण का सहयोग कर रहे सभापति नामक राजकुमार की और चलाए जो उन्हें संभाल ना सका और एक ही क्षण में उसका ध्वज , धनुष, सारथी, घोड़े, उसकी भुजाएं और मस्तक काटकर रथ से नीचे जा गिरे |

इसके बाद अर्जुन ने पुन: तीन, उसके बाद आठ, फिर दो, फिर चार और अंत में 10 बाण मारकर बारम्बार घायल कर दिया | जब तक कर्ण संभल पाते, अर्जुन नें भयंकर अस्त्रों से हज़ारों सनिकों, हाथियों और रथों का संहार शुरू कर दिया |

कौरव सैनिक कर्ण को पुकारने लगे | कर्ण, शीघ्र बाण छोड़ो वरना ये पहले ही पूरी सेना का अंत कर डालेगा | कर्ण तुरंत संभले और सारी शक्ति लगाकर उत्तम बाणों से पांडव और पांचाल सेना का विनाश करने लगे |

तब तक पहले घायल हो चुके युधिष्ठिर फिर से युद्ध मैदान में आ पहुंचे | उन्हें लौटा देख अर्जुन को अति हर्ष हुआ |

ये युद्ध भयंकर से अति भयंकर होता जा रहा था | दोनों योद्धा सबसे उत्तम अस्त्र और बाणों का छोड़े जा रहे थे |

इसी बीच अर्जुन ने गांडीव की प्रत्यंचा इतनी जोर के खीच डाली की वह गर्जना करती हुई टूट गई | मौका पाकर कर्ण ने अर्जुन और श्री कृष्ण की तरह पल भर में अनेकों अनेक बाण छोड़कर उन्हें घायल कर दिया |

कर्ण ने भीमसेन को भी अनेक बाणों से घायल कर डाला | कर्ण इतने बाण एक साथ छोड़ देते की आकाश में सूर्य दिखना बंद हो जाता था | कर्ण नें पंचाल और सोमक योद्धाओं को जहाँ का तहां रोक दिया | कर्ण नें उनके अनेक रथ, हाथियों और सैनिकों का संहार डाला | कौरव पक्ष नें फिरसे समझ लिया की अर्जुन अब कर्ण के बस में हो गया, और वे कर्ण की फिरसे जयजयकार करने लगे |

ऐसा वर्णन मिलता है की अचानक युद्ध भूमि में सुगंधित वायु चलने लगी | अर्जुन ने गांडीव की प्रत्यंचा को रगड़कर भयंकर वेगशाली बाणों से पुन: कर्ण को घायल कर डाला |

कर्ण फिर जोर से गरजे और तीन बाण अर्जुन और पांच बाण श्री कृष्ण को और छोड़े जो उन्हें छूते हुए ज़मीन में जा धंसे | असल में वे बाण तक्षक पुत्र अश्वसेन के दास पांच विशाल सर्प थे | जैसे ही वे वापस कर्ण ही और जाने लगे | अर्जुन नें 10 भालों से उन पांच सर्पों पर प्रहार किया और उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए | कृष्ण को घायल हुआ देख अर्जुन और अधिक क्षमता से प्रहार करने लगा |

अर्जुन ने बाण समूहों का ऐसा जाल रचाया की कर्ण की रक्षा में लगे दुर्योधन से सबसे उत्तम योद्धा एक क्षण में रथ और घोड़ों सहित काल के गाल में समा गए | उनकी संख्या 2 हज़ार बताई गई है | जो बच गए वे रण भूमि छोड़ सबकी उपेक्षा करते हुए वहां से भाग खड़े हुए |

दुर्योधन ने यह होता देख, अन्य सैनिकों को कर्ण की सहायता के लिए आगे भेजा | वे सैनिक भी कुछ ही पल वहां टिक सके और वीरगति को प्राप्त हो गए | कर्ण ये सब होता देख कर भी तनिक भी विचलित नहीं हुआ | जहाँ तक अर्जुन के बाण पहुँच सकते थे अब कौरव सैनिक उसके पीछे ही खड़े रहे | अर्जुन और अधिक वेग से आकाश में बाण चलाते किन्तु कर्ण उनके हर बाण को आकाश में ही काट देते | कर्ण का धनुष अमोघ था | उसकी प्रत्यंचा बड़ी बलशाली थी |

अर्जुन एक विशेष अस्त्र से अधिक से अधिक दूरी तक वार करने लगे | तब कर्ण ने अपने गुरु परशुराम जी से प्राप्त एक अत्यंत विशेष अस्त्र जिसका नाम आथर्वण अस्त्र था उसका प्रयोग किया | अर्जुन के दूर तक जाते बाण भी अब विफल होने लगे | ये युद्ध भयंकर से भी भयंकर प्रतीत होने लगा |

ऐसा लगा मानो सम्पूर्ण आकाश बाणों से ठसाठस भर गया हो | कभी लगता की सुर्यपुत्र कर्ण बस अब अर्जुन पढ़ कर देंगे, तो कभी लगता की अर्जुन के हाथों कर्ण वध हुआ ही समझो |

वहां पाताल निवासी अश्वसेन नामक नाग, जिसका अर्जुन से खांडव वन के समय का वैर था और जिसके पांच नाग कुछ की क्षण पहले अर्जुन में मार डाले थे वहां चुपके पृथ्वी के भीतर से निकला | उसे लगा अर्जुन से बदला लेने का ये सबसे उत्तम अवसर है | कर्ण के रथ में एक अलग तरकस में रखे इकलौते सर्पमुखी बाण की नोक पर उसने अपना लघु रूप करके खुद को उस पर लपेट लिया |

कर्ण के पास पहले से ही एक उत्तम श्रेणी का सर्पमुखी बाण था | कर्ण ने अनेक वर्षों के परिश्रम के बाद इसका निर्माण किया था |

जैसे की कर्ण की नज़र उस तरकस पर पड़ी, उसनें तुरंत उसका संधान अपने विजय धनुष पर कर डाला | कर्ण को भी ये आभास नहीं था की उसके इस बाण पर योगबल से एक नाग घुसा बैठा है | सहस्त्र नेत्रधारी इंद्र नें उसे सबसे पहले देखा और वे ये सोच शिथिल हो गए, की अब तो मेरा पुत्र मारा ही गया समझो |  जैसे ही उत्तम सारथी शल्य ने कर्ण को एक विचित्र बाण का उपयोग करते देखा उन्होंने तुरंत कहा | कर्ण, तुम्हारा यह बाण शत्रु के कंठ में नहीं लगेगा | तुम इसका फिरसे संधान करो, जिस से ये मस्तक काट सके |

कर्ण के नेत्र क्रोध से लाल हो गए और उन्होंने शल्य से कहा : कर्ण दो बाण का संधान नहीं करता | मैं जैसे योद्धा कपटपूर्वक युद्ध नहीं करते | ऐसा कहकर कर्ण नें वर्षों के परिश्रम से बने उस बाण को अर्जुन की और छोड़ दिया | और उच्चस्वर में बोला, अर्जुन, अब तू निश्चित ही मारा गया | वह बाण आकाश में जाते ही प्रज्वलित हो उठा और अतिवेग से अर्जुन की ओर पल भर में पहुँच गया |

श्री कृष्ण ने युद्ध स्थल में एक विचित्र खेल सा किया और अपने मन द्वारा संचालित उत्तम रथ को तुरंत धरती में धंसा दिया | साथ ही वे अद्भुत श्वेत अश्व जो सदैव श्री कृष्ण के इशारे की प्रतीक्षा में रहते थे, तुरंत अपने घुटने टेक कर झुक गए |

कर्ण द्वारा चलाया गया वह बाण सीधे अर्जुन के किरीट अर्थात मुकुट में जा लगा | अर्जुन को वह उत्तम किरीट देवराज इंद्र से प्राप्त हुआ था, जिसका निर्माण इंद्र ने स्वयं किया था | मुकुट के गिरते ही अश्वसेन नाग ने उसे हर लिया | जब अश्वसेन को आभास हुआ की उस मुकुट में अर्जुन का मस्तक नहीं है तो वह तुरंत कर्ण की और भागा | और जाकर कर्ण से बोला : तुमनें अच्छी तरह सोच विचार कर मुझे नहीं छोड़ा इसलिए मैं अर्जुन के मस्तक का अपहरण नहीं कर सका | 

तब सुर्यपुत्र कर्ण नें आश्चर्य से पूछा की तुम कौन हो ?

मैं खांडव वन का एक नाग हूँ | अर्जुन के द्वारा मेरी माता का वध हुआ था और मेरा वन भी अग्नि की भेंट चढ़ गया था | आज अगर साक्षात् इंद्र भी सामने आ जाएँ तो भी अर्जुन मुझ से बच ना सकेगा | तुम मुझे अपने बाण पर फिरसे अर्जुन की तरफ छोड़ो |

इतना सुनकर सूर्यदेव के उस श्रेष्ठ पुत्र ने कहा : मेरे पास सर्पमुख बाण है, मैं उत्तम यत्न कर रहा हूँ | मैं अर्जुन को स्वयं ही मार डालूँगा | आप यहाँ से सुखपूर्वक चले जाएँ |

अश्वसेन, कर्ण के उन वचनों को सहन नहीं कर सका और अर्जुन को मारने के लिए युद्ध भूमि में दौड़ने लगा | अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ की ये कौन दौड़ा आ रहा है | तब श्री कृष्ण नें अर्जुन को सारी बात बताई | अर्जुन ने अपनी और आते उस नाग को 6 बाणों से वहीं मौत के घाट उतार दिया |

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