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महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – कर्ण और अर्जुन भाग 3

महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – कर्ण और अर्जुन भाग 3

कर्ण और अर्जुन के महायुद्ध का यह तीसरा भाग है |

कर्ण और अर्जुन के बीच महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – भाग 1 का लिंक | भयंकर युद्ध – कर्ण और अर्जुन भाग 2

तुरंत ही दोनों महावीर फिरसे एक दुसरे को घायल करने लगे | अर्जुन के एक नाराच बाण से कर्ण का कवच छिन्न भिन्न हो गया | कर्ण ने भी अर्जुन और श्री कृष्ण को अनेक बाण मारे |

कर्ण का कवच टूट जाने पर हर बाण उनके शरीर को छूने लगा और रक्त की धाराएं बहने लगी | एक समय ऐसा भी आया जब कर्ण मूर्छित हो रथ में ही लड़खड़ा गए | अर्जुन ने उस समय कर्ण को मारने की इच्छा नहीं की | किन्तु श्री कृष्ण नें कहा : अर्जुन इस तरह ना खड़े रहो | विद्वान पुरुष इस प्रकार शत्रु दमन के समय चुप चाप खड़े नहीं रहते | शत्रुओं को मारकर बुद्धिमान पुरुष धर्म और यश का भागी होता है | इसलिए सदा तुमसे शत्रुता रखने वाले इस अद्वितीय वीर को शीघ्रता पूर्वक मार डालो |

श्री कृष्ण के वचनों को आज्ञा मानकर अर्जुन ने वत्स दन्त अस्त्र (बछड़े के दांतों जैसी नोक वाला अस्त्र) से कर्ण पर प्रहार किया और अनेक वत्स दन्त कर्ण की छाती में जा घुसे |

इसी बीच काल अदृश्य रूप में प्रकट होकर मानो बोल उठा हो – अब कर्ण के वध का समय आ पहुंचा है | भूमि तुम्हारे पहिये को निगल जाना चाहती है |

वत्स दन्त अस्त्र से घायल कर्ण ने पुन: भार्गावास्त्र प्रकट करने का प्रयास किया, किन्तु उसके मन से उसका अभिमन्त्रण निकल गया और वह प्रकट नहीं हुआ | जैसे ही कर्ण का रथ जरा हिलता बांया पहिया ज़मीन में धंसता जाता | ब्राह्मण के शाप से जब रथ धसने लगा, परशुराम जी से प्राप्त अस्त्र भूल गया और उसका घोर सर्पमुख बाण अर्जुन के द्वारा काट डाला गया, तब कर्ण अत्यंत खिन्न हो गए और कुछ इस प्रकार परमात्मा से बोले :

धर्मज्ञ पुरुषों से सदैव सुना है की धर्म परायण पुरुष की धर्म ही रक्षा करता है | मैंने सदैव अपने धर्म का पालन किया, किन्तु धर्म भी हमें मारता ही है | हे विधाता, धर्म भी किसी की रक्षा नहीं करता |

इतना होने के बाद भी कर्ण नें विजय धनुष नहीं छोड़ा और श्री कृष्ण और अर्जुन पर अनेक बाण छोड़े | तब श्री कृष्ण नें कहा पार्थ, कोई उत्तम बाण छोड़ो | अर्जुन नें ब्रह्मास्त्र उत्पन्न किया और आकाश की तरफ छोड़ा | असंख्य बाणों की वर्षा होने लगी | कर्ण के रथ की तरफ आते सभी बाणों को कर्ण नें बाण समूहों को उत्पन्न करके नष्ट करना प्रारंभ कर दिया | वो एक अद्भुत दृश्य था, जब ब्रह्मास्त्र भी इस प्रकार विफल होता प्रतीत हुआ | कर्ण नें अर्जुन की और एक उत्तम बाण छोड़ा और धनुष को डोरी काट डाली | अर्जुन तुरंत प्रत्यंचा बदल लेता | एक एक करके कर्ण नें आठ डोरियाँ काट डाली | शायद कर्ण को लगा की अर्जुन के धनुष में कुछ ही प्रत्यंचा हैं | पर गांडीव में 100 प्रत्यंचा लगी थी | जितनी शीघ्रता से कर्ण डोरी काट देते, अर्जुन उस से अधिक शीघ्रता से प्रत्यंचा चढ़ा देता | वह भी एक अद्भुत घटना थी |

उस वक़्त कर्ण दोनों एक दुसरे से उत्तम प्रतीत होने लगे |

जैसे ही अर्जुन ने एक भयंकर लोहमय बाण प्रकट कर उसमें रुद्रास्त्र की शक्ति का अंश अभिमंत्रित किया, राधा पुत्र कर्ण के रथ का पहिया धरती में समा गया |

कर्ण ने तुरंत नीचे उतर रथ का पहिया निकालने के लिए अपना सारा दम लगा दिया | उनके बहुबल से पहिये को जकड़े पृथ्वी का अंश भी 4 उंगल ऊपर आ गया किन्तु पहिये को पृथ्वी नें नहीं छोड़ा |

कर्ण का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुंचा और उनकी आँखों से क्रोध की जलधारा बह निकली | 

उन्होंने अर्जुन की तरफ देखा और इस प्रकार बोले :

हे कुंती कुमार, दो घडी प्रतीक्षा करो | मेरे इस बाएँ पहिये को धरती में फँसा हुआ देख कर तुम कपटपूर्वक बर्ताव का परित्याग करो | हे कुंती कुमार, जिस मार्ग पर कायर चला करते हैं तुम उस मार्ग पर कदाचित ना चलो |

तुम वीरों में धर्मयुद्ध करने वाले विशिष्ट वीर के रूप में विख्यात हो |

हे अर्जुन, जो केश खोलकर खड़ा हो,

युद्ध से मुंह मोड़ चुका हो |

शस्त्रों का त्याग कर चुका हो |

प्राणों की भीख मांगता हो |

जिसके बाण, कवच और दुसरे आयुध नष्ट हो गए हों 

ऐसे पुरुषों पर उत्तम व्रत का पालन करने वाले महावीर योद्धा कदाचित शस्त्रों से प्रहार नहीं करते |

हे पांडू नंदन, तुम युद्ध के समस्त धर्मों को जानते हो, जब तक मैं रथ के पहिये को निकाल रहा हूँ, तब तक तुम मुझ भूमि पर खड़े हुए पर बाण ना बरसाओ | मैं श्री कृष्ण और तुमसे डर कर ये बात नहीं कह रहा हूँ, यद्यपि, तुम एक धर्मपरायण ऊच्च कुल के क्षत्रिय हो, इसलिए तुमसे ये बात कहता हूँ | बस दो पल अपने बाण रोको कुन्तीनन्दन |

इस बात का जवाब श्री कृष्ण ने दिया :

राधानंदन, आज बड़े सौभाग्य और हर्ष का दिवस है की तुम धर्म की बात कर रहे हो |

प्राय यह देखने में आता है की विपत्ति देख ही ,मनुष्य धर्म की शरण में जाने लगता है, बल्कि अपने किए कुकर्मों को देख कर नहीं |

जब दुर्योधन, दुशासन, शकुनी और तुमने वस्त्र धारण कर रही राज बहु को भरी सभा में बलपूर्वक बुलवाया, क्या उस समय तुम्हारे मन नेधर्म का विचार नहीं उठा ?

जब शकुनी नें जुए का खेल ना जानने वाले पांडवों को तुम्हारे सामने ही छल से हराया, क्या तब भी तुम्हें धर्म दिखाई पड़ा था ?

तेरह वर्ष बीत जाने पर भी जब दुर्योधन ने पांडवों को उनका राज्य वापस नहीं किया, और तुमने अपने मित्र को नहीं समझाया, तब क्या तुम्हें वो बात धर्म उपयुक्त लगी थी ?

जब लाक्षाग्रह में कुंती कुमारों को जलाने का षड़यंत्र रचा जा रहा था तब भी तुम्हें सब ज्ञात था, तब क्या वो षड़यंत्र, धर्म था वीरवर कर्ण ?

याद है उस राज्यसभा में तुमने निरपराध द्रौपदी से कौनसे शब्द कहे थे | एक वैश्या का मान क्या और अपमान क्या, पांडव तो अब नष्ट हो गए, तू अब किसी दूसरे पति का वरण कर ले | ये बात कहते हुए तुम गजगामिनी द्रौपदी को किस प्रकार नेत्र फाड़ फाड़ कर देख रहे थे, तब तुम्हारा धर्म जिंदा था या मर गया था वीरवर ?

जब युद्ध में तुम और अन्य अनेक महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों और से घेरकर मार डाला था | तब वो बालक भी पृथ्वी पर था और तुम सब रथ पर आरूढ़ थे | तुम सबनें मिलकर किस प्रकार उसका वध किया था, क्या वो भी धर्म का कोई पाठ था महादानवीर कर्ण  ?

अगर उन अवसरों पर धर्म नहीं था तो आज सर्वथा धर्म का पाठ अर्जुन को पढ़ाकर तालू सुखाने से क्या लाभ ?

पूर्व काल में पुष्कर ने राजा नल को जुए में जीत लिया था | किन्तु उन्होंने अपने पराक्रम से पुन: अपने राज्य और यश दोनों को प्राप्त कर लिया था | उसी प्रकार लोभ शून्य पांडव जो 5 गाँव पर भी संतोष कर लेते अब सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश कर अपने बाहुबल से फिर अपना राज्य प्राप्त करेंगे | पांडवों ने सदैव धर्म को सुरक्षित रखा है, अतः धर्म ही इनकी रक्षा करेगा और धृतराष्ट्र के समस्त पुत्रों और सगे सम्बन्धियों का नाश होगा |

उस शब्दों को सुन, कर्ण का मस्तक लज्जा से झुक गया | श्री कृष्ण के वचनों ने उन्हें निरुत्तर कर दिया |

कर्ण रथ के पहिये को छोड़ फिरसे रथ पर जा चढ़ा और सिर्फ दिव्यास्त्रों अंतिम प्रयोग करने लगा | कर्ण के ब्रह्मास्त्र को अर्जुन नें ब्रह्मास्त्र से काट दिया | अर्जुन के आग्नेयास्त्र को, कर्ण नें वरुणास्त्र से काट दिया | फिरसे मेघों का अन्धकार छा गया | अर्जुन नें वायव्यास्त्र से मेघों को उड़ा दिया |

तब कर्ण नें फिर चमत्कार किया और एक भयंकर बाण हाथ में लिया | बाण के प्रकट होते ही प्रचंड वायु चलने लगी, सब और धूल छा गई | ये वायव्य अस्त्र का एक परिष्कृत रूप था जिसमें वज्र जैसा तेज था | जो अतिशीघ्र गति से अर्जुन के वक्ष स्थल में जा घुसा | उस समय अर्जुन का हाथ गांडीव से ढीला पड़ गया था |

मौका पाकर कर्ण फिरसे रथ का पहिया निकालने नीचे उतरे |

यह देख श्री कृष्ण नें अर्जुन से कहा : पार्थ, कर्ण इस से पहले की रथ पर चढ़े और अपना विजय धनुष उठाए, तुम उसका मस्तक शीघ्र ही काट डालो |

सर्वप्रथम तो अर्जुन ने क्षुरप्र बाण से कर्ण के ध्वज को काट डाला | ऐसा लगा मानो कौरवों के यश और अभिमान का अंत हो गया |

तब अर्जुन नें अपने तरकस से एक अन्जलिक बाण निकाला | उस विशाल बाण की गति को रोकना अत्यंत दुर्गम था |

कर्ण नें उसे गांडीव पर रख कर अभिमंत्रित किया और कहा | अगर मैंने तप किया हो, गुरुजनों को अपनी सेवा से संतुष्ट किया हो, अपने हितेषी मित्रों की बात ध्यानपूर्वक सुनी हो तो यह बाण मेरे शक्तिशाली शत्रु का नाश कर डाले | इतना कहकर अर्जुन नें अन्जलिक अस्त्र कर्ण के मस्तक की तरफ छोड़ दिया |

जिस प्रकार इंद्र नें अपने वज्र से वृकासुर का मस्तक काट लिया था, उसी प्रकार अर्जुन के उस बाण नें कर्ण का मस्तक उसके धड से अलग कर दिया | कर्ण का मस्तक भूमि पर जा गिरा और 1 क्षण के बाद उनका शरीर भी धराशायी हो गया |

एक महान योद्धा का आखिर अंत हो गया |

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