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आखिर दुर्योधन नें मत्स्यदेश पर हमला क्यों किया ? अर्जुन और विराट युद्ध

आखिर दुर्योधन नें मत्स्यदेश पर हमला क्यों किया ? अर्जुन और विराट युद्ध

विराट पर्व महाभारत का एक सबसे चर्चित पर्व है, जिसमें अर्जुन का अकेले सभी कुरु योद्धाओं को एक साथ हराना बताया गया है | हम आपको विराट पर्व विस्तार से बताएँगे जिसमें आपको दुर्योधन की बुधिमत्ता भी साफ़ दिखाई देगी |

जब भीम द्वारा कीचक का वध कर दिया जाता है और दुर्योधन द्वारा भेजे गए सारे गुप्तचर बिना पांडवों का पता लगाए वापस आ जाते हैं |

गुप्तचर कुरु राजसभा में बताते हैं : महाराज, हम पांडवों का पता लगाने के लिए विशाल वनों में गए, हमनें वहां पांडवों के पदचिन्ह खोजने तक जितना प्रयास किया, किन्तु हम नहीं जान सके की आखिर वे कहाँ गए | महाराज, हमनें ऊंचे ऊँचे पर्वतों के शिखरों तक की यात्राएं की, भिन्न भिन्न देशों में गए, जनता के बीच घुमे, गावों में, बाजारों में सब दिशाओं में पांडवों को अपना सम्पूर्ण प्रयत्न करके ढूंढने की कोशिश की, किन्तु हम नहीं जान सके की वे सब पांडव आखिर कहाँ गए |

इतना खोजने के बाद हमें ऐसा ही प्रतीत होता है की वे सर्वथा नष्ट हो गए हैं |

दुर्योधन बड़े ध्यान से गुप्तचरों की बातें सुनता रहा |

महाराज, कुछ काल तक तो हम उनके सारथियों के पीछे भी लगे रहे, किन्तु हमें पांडवों का कहीं पता नहीं चला | किन्तु हमनें एक बात का सही सही पता लगा लिया है |

युधिस्ठिर के सारथी इन्द्रसेन, भीम के सारथी विशोक और अर्जुन के सारथी पुरु, पांडवों के बिना ही द्वारिका पहुँच गए हैं | द्रौपदी भी वहां नहीं है | हे नरेश्वर, हम आपके लिए एक और सन्देश लाये हैं, जो आपको अति प्रिय लगेगा |

राजन, जिस मत्स्यराज विराट के सेनापति महाबली कीचक नें अपनी विशाल सेना के द्वारा त्रिगर्त देश पर आक्रमण कर उसे तहस नहस कर दिया था, उसका गन्धर्वों नें उसके समस्त भाइयों सहित रात्रि में गुप्त रूप से वध कर दिया है | राजा विराट का साला और रानी सुदेष्णा का बड़ा भाई कीचक अब श्मशानभूमि में मरा पड़ा है |

राजन, एक स्त्री के कारण, गन्धर्वों नें उसके अंग भंग करके उसे बड़ी निर्ममता से मार डाला | यह समाचार पाकर आप निश्चित ही प्रसन्न हुए होंगे | महाराज, अब आप हमें आज्ञा दें की आगे हमें क्या करना है ?

इसके बाद दुर्योधन मन ही मन कुछ देर सोचता रहा, और बोला मैं इस सभा में उपस्थित आप सबका मत जानना चाहता हूँ की आप क्या सोचता हैं कि पांडव आखिर कहाँ चले गए ? अज्ञातवास के अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं | यदि उन्होनें शेष बचा समय भी आराम से व्यतीत कर लिया तो वे अपनी प्रतिज्ञापालन से मुक्त हो जाएंगे और कौरवों के लिए निश्चित ही दुखदायी बन जाएंगे |

राजसभा में उपस्थित सभासदों नें एक एक कर अपना विश्लेषण इस प्रकार सुनाया |

सबसे पहले कर्ण बोले : अतिशीघ्र आपको दूसरे अति कार्यकुशल गुप्तचर भेजने चाहिए, जो धूर्त होने के साथ साथ अपना कार्य अच्छी प्रकार जानते हों | उन्हें अनेक भागों में बांटकर, अलग अलग देशों में जनता के बीच, महात्माओं के आश्रमों में, तीर्थस्थानों में भेजा जाए | उन्हें युक्तियाँ सुझाई जाएँ जिस से वे अपना काम गहनता से कर सकें | पांडव अवश्य किसी गुप्त स्थान पर छिपकर निवास कर रहे हैं  और वे नष्ट हो गए हों, मैं ऐसा नहीं मानता | अतः आपको बिना समय व्यर्थ किए सबसे उत्तम गुप्तचरों को नदियों के समीप के स्थानों, कुओं के समीप, तीर्थों, गावों, उत्तम आश्रमों, पर्वतों और गुफाओं में भेजना चाहिए |

तुरंत ही दुषाशन बोल उठा : अंगराज कर्ण बिलकुल सही कह रहे हैं | हमारा जिन गुप्तचरों पर अधिक विश्वास हो, उन्हें समस्त साधन जैसे धन, रथ इत्यादि देकर पुन: पांडवों की खोज में भेजना चाहिए | गुप्तचरों के साथ साथ अन्य लोगों को भी इस काम में लगाया जाए | अभी तक उनका कुछ पता नहीं चला है | मेरे विचार में वे किसी अत्यंत गुप्त स्थान में छिपे हैं, या दूर समुद्र किनारे चले गए हैं | यह भी संभव है की उन्हें महान वन का कोई विशाल अजगर निगल गया हो |

इसके बाद आचार्य द्रोण बोले :  पांडव अत्यंत शूरवीर, बुद्धिमान, धर्म का पालन करने वाले और अपने बड़े भाई की हर आज्ञा का पालन करने वाले हैं | ऐसे पुरुष ना तो नष्ट होते हैं और ना ही कोई उनका तिरस्कार कर सकता है | युधिस्ठिर तो धर्म के हर तत्व को जानते हैं | अतः मैं अपनी बुद्धि से यही देख पा रहा हूँ की पांडव अपने अनुकूल समय आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वे नष्ट नहीं हो सकते | इस समय जो भी यत्न करना है उसे अत्यंत सोचविचार कर करना चाहिए, उसमें विलम्ब करना उचित नहीं है |

पांडव हर प्रकार की तपस्या में निपुण हैं, अतः उन्हें पाना नितांत कठिन है | अगर कोई उन्हें पा भी ले तो उन्हें पहचान पाना लगभग असंभव है | वे वाक् पटुता जानते हैं, अतः आँखों से दिख जाने पर भी वे उस मनुष्य को मोह लेंगे और अपनी पहचान छुपा लेंगे | इन सब बातों को जानकर ही आगे कुछ करना चाहिए |

इसके बाद भीष्म पितामह अपनी बात रखते हैं :  जो भी आचार्य द्रोण नें कहा है, वह सर्वथा उचित है | पांडव शुभ लक्षणों से संपन्न हैं | अपने हर व्रत का पालन करने में तत्पर रहते हैं | वे अनेक प्रकार के दुर्लभ ज्ञान से संपन्न है | उपदेशों को अत्यंत ध्यान से सुनने वाले हैं | सत्य व्रत का पालन करने में सदेव तत्पर रहते हैं | अज्ञातवास की अवधि और उस व्रत को ठीक से जानने वाले बुद्धिमान पुरुष हैं और श्री कृष्ण द्वारा सुझाई गई युक्तियों का अनुसरण करने वाले है | अतः मेरा भी यही मत है की वे सर्वथा नष्ट नहीं हो सकते |

पांडवों के विषय में अपनी बुद्धि से भलीभांति सोच विचार कर मैं जो बात कहने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो | युधिष्ठिर की नीति की मुझ जैसे पुरुष निंदा नहीं कर सकते | इस तेरहवें वर्ष में धर्मराज युधिष्ठिर के निवास स्थान के बारे में जैसा यहाँ उपस्थित लोग समझते हैं, मैं वैसा नहीं समझता | मेरा मानना है, जिस नगर में युधिष्ठिर रह रहे होंगे, वहां के राजा का इस अवधि में कोई अकल्याण नहीं हुआ होगा | उस जनपद के लोग अत्यंत दानशील, उदार और लज्जाशील होंगे | वहां के मनुष्य प्रिय वचन बोलने वाले, सत्यपरायण, हृष्टपुष्ट और अपने अपने कार्य में अत्यंत कुशल होंगे | वे दूसरों में द्वेष नहीं अपितु गुण देखने वाले होंगें | वो एक संपन्न राष्ट्र होगा जहाँ मेघ भी उचित वर्षा करने होंगे | वहां धर्म और भगवान् के स्वरुप पर पाखंड नहीं किया जाता होगा | वह दूध, दही और घी से संपन्न राष्ट्र होगा |

इस प्रकार जहाँ ऐसे लक्षण पाए जाएँ, मेरे विचार से वहीँ बुद्धिमान युधिष्ठिर का यत्नपूर्वक छिपाया गया निवास स्थान होगा | इसके विपरीत मुझे कोई बात जान नहीं पड़ती | कुरुनंदन, यदि मेरी बातों पर तुम्हें विश्वास हो तो इसी प्रकार सोच विचार कर तुम्हें जो करना है उसे शीघ्र करो |

अब कृपाचार्य बोलते हैं : राजन, भीष्मजी नें जो भी बात कही है वह अवसर के अनुकूल होते हुए, पूर्ण युक्ति संगत है | इस विषय में, मैं भी अपनी बात जोड़ते हुए जो कहता हूँ, उसे भी सुनें | जिसे भी सम्राट बने रहने की इच्छा हो, उसे साधारण शत्रु की अभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए | फिर जो सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित पांडव हैं, उनकी तो बात ही क्या | अज्ञातवास की जो अवधि है वह प्राय: समाप्त ही हो चली है | पांडव, प्रकट होते ही पूर्ण उत्साह से संपन्न हो जायेंगे | इस अवसर पर अपने राष्ट्र और शत्रु राष्ट्र में कितनी शक्ति है इसे ठीक ठीक समझ लेना चाहिए |

इस समय तुम्हें अपनी सेना, कोष और नीति ऐसी बनाए रखनी चाहिए, जिस से समय आने पर हम उन बलशाली पांडवों के साथ उचित संधि कर सकें | इस समय तुम्हें अपनी पूर्ण बुद्धि से ये जान लेना चाहिए की तुम्हारे पास कितनी शक्ति है, तुम्हारे बलवान और निर्बल मित्रों में सम्पूर्ण बल कितना है | तुम्हारी उत्तम, माध्यम और निम्न सभी सेनाएं प्रसन्न हैं या अप्रसन्न |

राजन, साम अर्थात समझाना, दान अर्थात धन दक्षिणा आदि देना, भेद अर्थात शत्रु में फूट डालना,  दण्ड देना और कर वसूलना – इन सभी नीतियों से शत्रु पर आक्रमण करना चाहिए |

राजन, दुर्बलों को दबाकर, मित्रों से मेल जोल और संधि बढ़ाकर और सेना को सुन्दर वचन और उचित वेतन आदि देकर अपने अनुकूल कर लेना चाहिए | इस प्रकार अपना कोष और शक्ति बढाने से कोई बलवान से बलवान शत्रु ही क्यों ना आ जाए, फिर चाहे वे पांडव ही क्यों ना हो, तुम उनके साथ संधि और युद्ध दोनों कर सकोगे |

इसके बाद दुर्योधन नें उन सबकी बातों को बड़े ध्यान से सुना और पूर्ण विचार करने के बाद ये कहा : हे महापुरुषों, मैनें शस्त्रों के विद्वानों, ज्ञानियों और पुण्यात्मा पुरुषों से ऐसी बातें सुनी हैं, जिनसे मैं मनुष्यों के बल और अर्थ की जानकारी रखता हूँ | इस समय मानव, दैत्य और राक्षसों में मात्र 4 ही ऐसे महाबली इस धरती पर हैं जो आत्मबल, बाहुबल और धैर्य में इंद्र के समान हैं | मैं उन सबमें एक सामान प्राणशक्ति देखता हूँ | उनके नाम हैं : बलदेव, भीमसेन, मद्रराज शल्य और कीचक | इनके सामान कोई पांचवा वीर मेरी नज़र में नहीं है |

इन सब बातों को जानकार मुझे भीमसेन के उपस्थित होने का आभास हो गया है और ये भी स्पष्ट है की पांडव सर्वथा जीवित ही हैं | मुझे लगता है विराटनगर में कीचक को भीमसेन नें ही मारा है | गुप्तचरों के समाचार के अनुसार जिस नारी के कारण कीचक का वध हुआ वह मुझे द्रौपदी ही प्रतीत होते है | मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है की भीमसेन नें ही गन्धर्वों का नाम धर कर रात्री के समय उसे मार डाला |

भीमसेन के बिना भला कौन ऐसा शारीरिक बहुबल से सुसज्जित है जो बिना अस्त्र शस्त्र के उस बलशाली कीचक का वध कर सके और उसके अंगों को इस प्रकार क्षतविक्षत कर सके |  पितामह भीष्म नें युधिस्ठिर के निवास के सम्बन्ध में जो देश और प्रजा के गुण सुझाये हैं वे सब भी मैं मेरे दूतों के बताए अनुसार विराटनगर में ही देख पाता हूँ |

मैं यही मानता हूँ की निश्चित ही पांडव विराटनगर में भेस बदलकर रह रहे हैं | हमें पूर्ण शक्ति से विराट नगर पर आक्रमण करना चाहिए | इस से हमें 2 लाभों में से 1 लाभ हर अवस्था में होगा | अगर पांडव उस नगर में हुए तो वे अवश्य विराट नरेश की सहायता के लिए वहां आएंगे और उनके सामने आते ही उनका अज्ञातवास भंग हो जायेगा | और अगर पांडव वहां नहीं हुए तो हम विराट के विशाल गौधन पर अपना अधिपत्य कर वापस लौट आयेंगे | वैसे भी मत्स्य देश का राजा विराट मेरे प्रति तिरस्कार का ही भाव रखता है |

मैं इस समय सिर्फ इसी कार्य को नीति के अनुकूल मानता हूँ | अब दुर्योधन कैसे त्रिगर्त देश के राजा सुशर्मा के साथ युद्ध नीति बनाता है और आक्रमण के लिए सेना तैयार करता है

इस विडियो में जानें :

  • दुर्योधन को कैसे पता चला की पांडव कहाँ छिपे हैं 
  • गुरु द्रोणाचार्य और कृपाचार्य नें क्या सलाह दी दुर्योधन को 
  • अंगराज कर्ण नें क्या सलाह दी 
  • दुर्योधन बुद्धिहीन था या बुद्धिशाली 

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