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कर्ण और अर्जुन के बीच महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – भाग 1

कर्ण और अर्जुन के बीच महाभारत का सबसे भयंकर युद्ध – भाग 1

इस युद्ध की पृष्ठभूमि है, कर्ण के पुत्र वृषसेन की अर्जुन से टक्कर | युद्ध में वृषसेन नें नकुल के पुत्र शतानीक को तीन बाण मारकर अत्यंत घायल कर दिया | फिर इस शक्तिशाली रथी योद्धा ने तीन बाण अर्जुन पर, तीन बाण भीमसेन पर, सात बाण नकुल पर और बारह बाण श्रीकृष्ण पर चलाए और उन्हें घायल कर दिया | इस पराक्रम को देख कौरव सेना वृषसेन की जय जयकार करने लगी | पांडव सैनिक समझ गए की वृषसेन का अंतिम समय आ गया है, उस समय वृषसेन कर्ण के सामने खड़ा था | तब अर्जुन – कर्ण, दुर्योधन और अश्वथामा को एक साथ देख बोल उठा – कर्ण, आज युद्धस्थल में मैं तुम्हारे देखते देखते इस वीर और उग्रपराक्रामी वृषसेन को यमलोक भेज दूंगा | तब अर्जुन नें उन सबको उनके कायरतापूर्ण कृत्य – अभिमन्यु की मृत्यु याद दिलाई |

क्षणभर में अर्जुन ने अपना गांडीव पोछा और वृषसेन पर हँसते हँसते 10 बाण छोड़ दिए | पलभर में वृषसेन का धनुष, दोनों भुजाएं और मस्तक शरीर से अलग हो गए और रथ से नीचे गिर पड़े |

अपने पुत्र की इस प्रकार मृत्यु देख महाबली कर्ण को संताप और क्रोध एक साथ आ गया और उसने अर्जुन और श्री कृष्ण पर आक्रमण कर दिया |

कर्ण एक महासागर की तरह गर्जना करते हुए आगे बढ़ा | तब श्री कृष्ण ने मुस्कुराकर कहा – पार्थ, जिसके सारथि शल्य हैं और जिसके रथ में श्वेत घोड़े जुते हैं, वो दुर्योधन का प्रिय कर्ण सीधे इधर ही आ रहा है | उसका ध्वज देखो जो आकाश में एक रेखा सी खींचता चला आ रहा है | आज तुम्हें सम्पूर्ण प्रयत्न करके कर्ण का वध करना ही होगा | तुम्हारी सेना में दूसरा कोई योद्धा कर्ण के बाणों को सह नहीं सकता | श्री कृष्ण नें अर्जुन को उसकी क्षमता और बल का आभास कराया और कहा, जिस महादेव को दुसरे मनुष्य देख भी नहीं सकते तुमनें उनकी युद्ध में आराधना की है और वरदान प्राप्त किए हैं |

अर्जुन ने कहा : मधुसूदन, मेरी विजय अवश्य होगी क्योंकि इस जगत के पूर्ण ज्ञाता आप जो मुझ पर प्रसन्न हैं | अब अर्जुन इस युद्ध समरांगण में कर्ण का वध किए बिना नहीं लौटेगा | हे गोविन्द, आज या तो उस कर्ण के टुकड़े टुकड़े होंगे या आप मुझे कर्ण के बाणों से मरा देखिएगा | आज ऐसा युद्ध होगा, जिसे युगों युगों तक याद रखा जाएगा |

इतना सुनते ही, प्रभु श्री कृष्ण के मन द्वारा संचालित उनका रथ पल भर में ही कर्ण के रथ के समक्ष जा खड़ा हुआ |

दोनों दिव्य पुरुष, दोनों के पास उत्तम सारथि, दोनों के श्वेत घोड़े | जब ये दोनों रथ आमने सामने आये तो वहां उपस्थित योद्धाओं को ऐसा लगा मानो 2 सूर्य उदित हो गए हैं |

कर्ण के रथ पर जो ध्वज था उसमें हाथी की साँकल का चिन्ह और अर्जुन के रथ पर महाबली हनुमान रूपी वानर का चिन्ह बना था |

कर्ण का हर्ष बढाने के लिए सभी कौरव सैनिक बाजे और शंख बजाने लगे | वहीँ पांडव पक्ष के योद्धा भी अर्जुन का का हर्ष बढाने के लिए अनेक वाद्यों और शंख की ध्वनि से सब और प्रतिध्वनि उत्पन्न करने लगे |

दोनों महावीर श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ थे 

दोनों के पास विशाल धनुष थे 

दोनों अद्भुत बाणों, शक्ति और ध्वज से संपन्न थे 

दोनों ही उत्तम तरकस से संपन्न वीर थे 

दोनों कमर पर तलवार बांधे थे 

दोनों ही युद्ध के लिए मदमस्त हाथी की तरह थे 

इन के मुख सूर्य के प्रकाश की तरह कान्तिमान थे 

दोनों के पास उस काल के सबसे उत्तम सारथी थे 

कंधे सिंह के समान, भुजाएं काल के समान, आँखें रक्त की तरह लाल और दोनों ही एक दुसरे का वध कर देना चाहते थे |

दोनों इतने आयुधों से संपन्न थे की वहां उपस्थित प्राणियों को किसी एक की विजय पर संदेह होने लगा था |

दोनों ओर की सेनाएं अर्जुन और कर्ण की रक्षा के लिए उन्हें घेरकर आगे बढ़ने लगी | इस प्रकार इस युद्ध की शुरुआत हुई | ऐसा लगा मानो सम्पूर्ण प्रकृति दो भागों में विभक्त हो अर्जुन और कर्ण में से किसी एक का पक्ष लेने लगी |

महाभारत में उल्लेख है की उस क्षण इंद्र और सूर्यदेव अपने अपने पुत्रों की विजय के लिए वाद विवाद में उलझ गए थे |

तभी श्री कृष्ण और अर्जुन तो दूसरी ओर शल्य और कर्ण ने अपने अपने शंख बजाए |

तब अनायास और उत्सुकतावश अर्जुन ने श्री कृष्ण से प्रश्न किया | माधव, अगर आज कर्ण मेरा वध कर दे तो आप क्या करेंगे ? श्री कृष्ण ने हंसकर ये बात कही : यदि सूर्य अपने स्थान से गिर जाए, समुद्र सूख जाए और अग्नि सदा के लिए शीतल हो जाए तो भी कर्ण तुम्हें मार नहीं सकता | यदि ऐसा किसी प्रकार संभव भी हुआ तो ये संसार उलट जाएगा | मैं अपनी दोनों भुजाओं से ही इस युद्ध भूमि में कर्ण और शल्य को मसल डालूंगा | ये सुन अर्जुन मन ही मन मुस्कुरा उठा |

तभी दुर्योधन, कृतवर्मा, शकुनी, कृपाचार्य और कर्ण एक साथ श्री कृष्ण और अर्जुन पर प्रहार करने लगे | अर्जुन ने उन सब योद्धाओं के धनुष, ध्वज, घोड़े और सारथियों पर एक साथ प्रहार किया और कर्ण पर एक साथ बारह बाण छोड़े | ये देख शक, तुषार और यवन देश के योद्धा अर्जुन को मारने के लिए एक साथ दौड़े, अर्जुन नें अनेकों अनेक बाण एक साथ छोड़े और उनके सर कट कट कर युद्ध भूमि में गिरने लगे | मौत का ऐसा तांडव देख, दौड़ लगाते योद्धा सन्न खड़े रह गए |

यहाँ अंतिम बार दुर्योधन को अश्वत्थामा ने समझाना चाहा |

ऐसी मौत देख अश्वथामा नें दुर्योधन का हाथ पकड़ा और बोला | दुर्योधन, अभी भी समय है, पांडवों से संधि करलो | आपस के इस झगडे को त्याग दो | मेरे पिता और तुम्हारे गुरु तो साक्षात् ब्रह्मा जी की तरह अस्त्र विद्या के श्रेष्ठतम पंडित थे, इस युद्ध में वे भी मारे गए | यही दशा तुम्हारे पितामहः भीष्म की भी हुई | मेरे मामा कृपाचार्य तो अवध्य है इसलिए अब तक बचे हैं | तुम पांडवों के साथ मिलकर चिरकाल तक राज्यशासन करोगे | श्री कृष्ण भी तुम दोनों में विरोध नहीं चाहते | वे अब भी शांति के पक्षधर हैं | बस तुम्हारी इच्छा से शेष बचे सगे सम्बन्धी अपने अपने नगर लौट जायेंगे | हे नरेश्वर, अगर तुम मेरी बात नहीं सुनोगे तो निश्चित ही तुम्हें भी वीरगति प्राप्त होगी |

हे कुरुनन्दन, जीवित रहने वाला ही कल्याण और सुख के दर्शन कर सकता है | तुम पांडवों से संधि कर लो और कौरव कुल को शेष रहने दो | मैं कभी तुम्हारे अहित की बात नहीं करता | मेरी यह निश्चित धारणा है की कर्ण, अर्जुन को कदापि जीत ना सकेगा जिसके सारथी श्री कृष्ण हैं | तुमने अभी अभी अर्जुन का पराक्रम देखा है | ऐसा पराक्रम तो स्वयं इंद्र, यमराज और यक्षराज कुबेर भी नहीं कर सकते |

यहाँ दुर्योधन ने लम्बी सांस खींची और बोला : इस दुर्बुद्धि भीम ने जिस प्रकार मेरे प्रिय दुशासन की हत्या कर जो बात कही थी, वो अभी भी मेरे ह्रदय को पीड़ा दे रही है | हमनें बारंबार जो इन पांडवो से बैर रखा है, उसे सोचकर वे कभी मुझपर विश्वास नहीं करेंगे | तुम मेरे मित्र कर्ण को नहीं जानते | अर्जुन इतने पहार एक साथ करके थक गया है | अब बस कुछ ही क्षणों में कर्ण उसका वध कर देगा | फिर किसी से संधि की आवश्यकता ही समाप्त हो जाएगी |

उधर कर्ण और अर्जुन एक दुसरे की और बढ़ते जा रहे थे | वो विशाल पर्वतों के समान वे दोनों एक दूसरे पर अपने महान अस्त्रों से प्रहार करने लगे | बाणों के प्रहार से उन दोनों के शरीर, सारथि और अश्व क्षत-विक्षत हुए जा रहे थे | उनके भयंकर अस्त्रों से आकाश बार बार गर्जना करने लगता था | आकाश में उड़ने वाले प्राणियों नें भी आकाश छोड़, कहीं दूर डेरा जमा लिया था |

एक तरफ कौरव सेना और दूसरी तरफ सोमक सैनिक जो पांडवों के पक्ष से युद्ध कर रहे थे और इस दिन अर्जुन की सुरक्षा का दायित्व उनका था, घोर कोलाहल उत्पन्न कर रहे थे | युद्ध में रक्त और मांस की कीच जम गई थी | सोमक सैनिक बार बार चिल्ला रहे थे, हे कुंती कुमार, कर्ण का शीघ्र वध कर डालो | कर्ण का मस्तक और दुर्योधन की राज्य प्रति की अभिलाषा दोनों को एक साथ काट डालो |

वहीं दूसरी और कौरव योद्धा चिल्ला रहे थे | कर्ण, आगे बढ़ो | अपने पैने बाणों से अर्जुन को मार डालो | जिस से शेष बचे कुंती पुत्र स्वतः दीर्घकाल के लिए वन में चले जाए |

कर्ण ने एक साथ अनेक बाणों से अर्जुन को बींध डाला | तब अर्जुन ने हंसकर तीखी धार वाले दस बाणों से कर्ण हाथों और कांख पर प्रहार किया | दोनों अपने सर्वोत्तम बाणों का प्रयोग कर रहे थे, मानो आज के बाद वे कोई युद्ध ही नहीं करेंगे |

अर्जुन ने अपनी दोनों भुजाओं और गांडीव को पोंछकर नाराच (एक प्रकार का छोटा बाण), नालिक (अत्यंत पतला बाण), वराह कर्ण (चौड़ी नोक वाला बाण), क्षुर (धारदार छुरे की तरह बाण), अन्जलिक (अर्धचंद्र नोक वाला बाण) आदि बाणों का प्रयोग प्रारंभ किया | वे सब बाण कर्ण के रथ में घुसकर सब और बिखर जाते थे |

अर्जुन भौहें तिरछी करके कटाक्ष पूर्वक कर्ण को देखते देखते जिन जिन बाण समूहों से कर्ण पर प्रहार करता था, कर्ण उन सबको शीघ्रता से नष्ट कर देते थे | साधारण किन्तु अलग अलग प्रकार के बाणों वाला ऐसा युद्ध काफी समय तक चलता रहा |

जब ऐसे बाणों का कोई अर्थ नहीं रह गया तब अर्जुन ने अग्नि अस्त्र का भयंकर रूप में प्रयोग किया | उस अग्नि अस्त्र का प्रकोप बहुत अधिक था जो आकाश तक पहुँचता सा प्रतीत होता था | वहां उपस्थित योधाओं से वस्त्र जलने लगे और झुलसे हुए सैनिकों के चिल्लाने की आवाज़ बढती चली गई |

फिर प्रतापी सुर्यपुत्र नें आग्नेयास्त्र को शांत करने के लिए वरुणास्त्र का विराट रूप में ही प्रयोग किया | अचानक ही बड़े बड़े मेघ आकाश में उत्पन्न हुए और वहां का सारा प्रदेश जलमग्न सा हो गया | वरुणास्त्र का रूप इतना विशाल था की मानो वहां रात्रि हो गई हो |

तभी अर्जुन ने एक और दिव्यास्त्र का संचालन किया | वायव्यास्त्र से सभी मेघ समूह तुरंत वहां से छिन्न भिन्न हो गए और सूर्यदेव फिर से दिखने लगे |

तभी अर्जुन नें गांडीव और उसकी प्रत्यंचा को फिर से अभिमंत्रित किया और एक शक्तिशाली अस्त्र वज्रास्त्र को प्रकट किया | यह एक विचित्र वज्र अस्त्र था जिसके प्रभाव से अनेकों क्षुर, अन्जलिक, नालिक, वराह्कर्ण जैसे बाण हजारों की संख्या में चलने लगे | वे सभी वज्र जैसी शक्ति से अत्यंत वेग से प्रहार करने लगे | वे सब कर्ण के अंगों, घोड़े, धनुष, रथ के पहियों और ध्वजों में जा लगे | कर्ण का सम्पूर्ण शरीर रक्त से नहा गया |

तब कर्ण नें अपने धनुष को झुकाकर एक महान अस्त्र को प्रकट किया | मंत्र उच्चारण से वहां गंभीर गर्जना होने लगी और भार्गावास्त्र प्रकट हुआ | जैसे ही कर्ण नें उसे छोड़ा उसमें से अनेकों अनेक बाण निकलने लगे | वे सब शुक्षम किन्तु संख्या में बहुत ज्यादा थे | ऐसा लगा मानो बाणों का सैलाब का आ खड़ा हुआ | अर्जुन की और से आ रहे बाणों को पल भर में टुकड़े टुकड़े करते हुए इन बाणों नें पांडव पक्ष के अनेकों अनेक रथों, हाथियों, अश्वों और पैदल सैनिकों का संहार कर डाला |

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