×

ताजमहल या तेजोमहालए के विचित्र रहस्य का इतिहास

ताजमहल या तेजोमहालए के विचित्र रहस्य का इतिहास

अगर आपको ये विडियो अच्छा लगा हो तो इसे like, subscribe और share करना मत भूलिए | साथ ही subscribe बटन के पास बना छोटा सा घंटी वाला बटन दबाना भी मत भूलिए जिस से हमारी आगे आने वाली videos आप तक सीधे पहुँच सकें |

यदि शाहजहां मुमताज से इतना प्यार करते होते और उन्होंने वास्तव में ताजमहल का निर्माण सिर्फ इसलिए कराया होता जिससे वह लोगों को यह दिखा सके कि वह मुमताज से कितना प्यार करते थे,  तब तो इतिहास में मुमताज को किस तरह बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया था उसका उल्लेख अवश्य मिलता | पर इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता|

यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है, जिस शहंशाह ने जीवित मुमताज के लिए कभी कोई अलग महल नहीं बनवाया वह आखिर उसके मरने के बाद एक भव्य महल का निर्माण क्यों करवाएगा|

इतिहास में शहंशाह और राजा जयसिंह के बीच संपत्ति पर कब्जा करने के दस्तावेज मिलते हैं| ऐसा माना जाता है कि शाहजहां ने राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल जिसे आज हम ताजमहल के नाम से जानते हैं पर कब्जा कर लिया और वहां की संपत्ति हड़प पर और उसके द्वारा लूटा गया अन्य खजाना इसके सबसे निचले माले  में रखा गया है| क्योंकि इसके बहुत सारे कमरे आज तक नहीं खोले गए हैं ऐसा माना जाता है कि वह खजाना आज भी वही रखा है |

मुमताज से विवाह होने से पहले शाहजहां के भी कई अन्य विवाह हुए थे, मतलब यह मुमताज उनकी कोई अकेली पत्नी नहीं थी | इतनी सारी पत्नियों में से सिर्फ मुमताज के लिए इतने खर्चीले महल का निर्माण कराना और बाकी रानियों के बारे में कुछ खास ना करवाना किसी शहंशाह जैसे ओहदे पर बैठे राजा के लिए कोई सम्मान की बात नहीं कही जा सकती| इतिहास में भी मुमताज से शहंशाह के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता |

ब्रिटिश आलेखों के अनुसार ताजमहल के प्रांगण में पहरेदारों के लिए कमरे, घोड़ों के लिए अस्तबल, मेहमानों के लिए अतिथि गृह जैसी जगहों का भी उल्लेख है| एक रानी के मकबरे के लिए भला अतिथि गृह और घोड़ों के अस्तबल जैसी जगहों की क्या आवश्यकता |

इतिहास में हमें पढ़ाया जाता है कि ताज महल का निर्माण 1632 में शुरू होकर 1653 तक हुआ |  जबकि मुमताज की मृत्यु 1631 में हो गई थी | जब ताज महल का निर्माण उसके 1 साल बाद शुरू हुआ तो किस तरह उन्हें 1631 में ही दफना दिया गया |  और ऐसा भी नहीं है कि उनके दफनाने के तुरंत बाद ही ताजमहल का निर्माण पूर्ण हो गया हो | दरअसल 1632 में राजा जयसिंह से छीने गए इस महल का इस्लामीकरण शुरू हुआ |  1649 में इसके मुख्य द्वार का निर्माण पूर्ण हुआ जिस पर कुरान की आयतें तराशी गई थी |

 इस काल के दौरान बहुत से अंग्रेज पर्यटक भारत आए और उन्होंने अपने निजी पर्यटन के आलेखों में आगरा का उल्लेख किया है,  किंतु उसमें ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं मिलता | यह बहुत ही स्वभाविक बात है यदि 22 वर्षों तक 20000 मजदूर किसी भव्य महल का निर्माण कर रहे हैं तो उसका उल्लेख इन पर्यटकों के आलेखों में अवश्य मिलता |

किसी कब्रगाह को आखिर महल क्यों कहा जाएगा ? क्या किसी भी मुस्लिम देश जैसे अरब ईरान अफगानिस्तान में कोई ऐसी मस्जिद या कब्र है जिसके पीछे महल शब्द का उपयोग किया गया हो ? जवाब है नहीं | इसका आगे का हिस्सा,  मतलब ताज को मुमताज के नाम के संदर्भ में देखा जाता है, जबकि उसका असली नाम मुमता उल जमानी  था|

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि ताज महल का निर्माण सन 1155 में अश्विनी शुक्ल पंचमी के दिन  एक हिंदू राजा ने करवाया था |  बाद में बहुत से आक्रांताओं ने जब भारत पर आक्रमण किए तब ताजमहल को भी बहुत बार क्षति पहुंचाई और इसे कई बार लूटा गया |  ऐसा माना जाता है कि इसमें एक गुंबद नहीं बल्कि तीन गुंबद हुआ करते थे |  हिंदू राजाओं ने इसकी मरम्मत कई बार करवाई किंतु में बहुत ज्यादा समय तक इसकी रक्षा ना कर सके|
tejomahalya ka vivadit itihaas in hindi

ताजमहल में बंद अदभुत शिव रहस्य

शाहजहां के समय बहुत से यूरोपीय पर्यटक भारत आए जिन्होंने अपने आलेख में इस भवन का ताज ए महल नाम से उल्लेख किया है | जो कि इसके असली नाम तेजोमहालय से काफी मेल खाता है|  तेजो महालय का मतलब एक ऐसा महान स्थान यहां बहुत तेज विद्यमान है|  यहां तेज का तात्पर्य शिवलिंग से है|

ताज महल के अंदर जहां मुमताज की कब्र है, उसी स्थान पर इस शिव मंदिर का गर्भ है माना जाता है|  अगर आप वहां उपस्थित संगमरमर की जाली को ध्यान से देखेंगे तो उसमें 108 कलश चित्रित किए गए हैं |  इन 108 कलश का चित्रण किसी शिव मंदिर में होना बहुत स्वभाविक है लेकिन इसका किसी कब्र में पाया जाना नितांत अस्वभाविक है| 108 का महत्व हिंदू धर्म में ही प्रचलित है किसी और धर्म में नहीं|

आगरा को बहुत प्राचीन काल में अंगीरा कहते थे, क्योंकि यह एक बहुत महान ऋषि अंगिरा की तपोभूमि रही थी  जो भगवान शिव के बहुत बड़े उपासक थे |
shivling ka rahasya tajmahal in hindi
एक इतिहासकार ओक की पुस्तक के अनुसार एक संस्कृत शिलालेख है जो लखनऊ के वास्तु संग्रहालय की तीसरी मंजिल में रखा हुआ है जिसमें उस समय के राजा के मंत्री सलक्षण द्वारा कहा गया है की स्फटिक जैसा शुभ यह शिव मंदिर बनाया है जो अश्वनी शुक्ल पंचमी को बनकर तैयार हुआ | इस लेख का सन 1155 है|

जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान ही आयतें लिखी गयी हैं उनमे और बाकी लगे पत्थरों में भेद है | आयतें लिखे पत्थरों में पीलापन नज़र आता है जबकि बाकी पत्थर बड़ी ही अलग गुणवत्ता के हैं | इस से साफ़ जाहिर होता है की वे पत्थर वहां बाद में लगाये गए |

1 comment

comments user
Saurav raj

Sahi hai yaar

Post Comment

You May Have Missed